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Showing posts from December, 2018

न्यूटन का कणिका सिद्धान्त (Newton's Corpuscular Theory)

न्यूटन का कणिका सिद्धांत प्रकाश की प्रकृति के संबंध में न्यूटन ने कणिका सिद्धांत का प्रतिपादन निम्नलिखित प्रकार से किया- (1.) प्रत्येक प्रकाश स्रोत में असंख्य, अदृश्य, सूक्ष्म एवं हल्के कण निकलते रहते हैं जिन्हें कणिकाएं कहते हैं। (2.) यह कणिकाएं किसी समांग माध्यम में प्रकाश के वेग से सभी दिशाओं में सरल रेखाओं में चलती हैं। (3.) जब यह कणिकाएं वस्तुओं से परावर्तित कर हमारी आंख की रेटिना पर गिरती है तो हमें वस्तुएं दिखाई देती है। (4.) भिन्न भिन्न रंगों की प्रकाश की कणिकाएं  भिन्न भिन्न आकारों की होती हैं अर्थात प्रकाश का रंग कणिकाओं के आकार पर निर्भर करता है। कणिका सिद्धांत के आधार पर न्यूटन ने प्रकाश का निर्वात में से होकर गुजरना, प्रकाश का सीधी रेखाओं में चलना (छाया का बनना), प्रकाश का ऊर्जा स्वरूप होना  आदि तथ्यों को सफलतापूर्वक व्याख्या की है।

सरल आवर्त गति [Simple Harmonic Motion SHM]

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सरल आवर्त गति सरल आवर्त गति को समझने के लिए पहले हमें  आवर्त गति  और दोलन गति को समझना होगा आवर्त गति              जब कोई कण या पिण्ड एक निश्चित पथ पर एक निश्चित समय अंतराल के बाद अपनी गति को बार-बार दोहराता है (Repeat करता है), तो इस गति को  आवर्त गति कहते हैं। उदाहरण- पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा की गति दोलन गति              जब कोई पिण्ड या कण एक ही पथ पर किसी स्थिर बिंदु के इधर-उधर आवर्त गति करता है, तब इस गति को दोलन गति कहते हैं।उदाहरण के लिए, सरल लोलक की गति अब हम समझते हैं कि सरल आवर्त गति क्या है सरल आवर्त गति एक विशेष प्रकार की दोलनी गति है जोकि दो प्रकार की होती है  रैखिक सरल आवर्त गति { Linear Simple Harmonic Motion}  कोणीय सरल आवर्त गति { Angular Simple Harmonic Motion}  सरल आवर्त गति किसे  कहते हैं  सामान्यतः रैखिक सरल आवर्त गति को ही सरल आवर्त गति कहा जाता है सरल आवर्त गति में, कण किसी निश्चित बिंदु के इधर-उधर एक सरल रेखा में, इस प्रकार दोलन गति करता है कि कण के त्वरण की दिशा सदैव सरल रेखा के उस निश्चित बिंदु क

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton's Law of Gravitation)

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न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम बताता है कि "किन्ही दो पिंडों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण बल उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है इस बल की दिशा दोनों पिंडों को मिलाने वाली रेखा की दिशा में होती है।" अब माना दो पिंडोंके द्रव्यमान m1 व M2 हैं तथा उनके बीच की दूरी r है तो उनके बीच कार्य करने वाला आकर्षण बल F  समानुपात   m1×M2    तथा F  समानुपात      1/r²        अथवा F  समानुपात   m1×M2/r ² इस प्रकार F=G×m1×M2 /r² जहां G एक अनुक्रमानुपाती नियतांक है क्योंकि G का मान पिंडों की प्रकृति, स्थान, समय, माध्यम ताप आदि पर निर्भर नहीं करता इसलिए इसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं ऊपर सूत्र में G का मात्रक न्यूटन मीटर²प्रति किलोग्राम² है तथा प्रयोगों द्वारा इसका मान 6.67×10-¹¹ न्यूटन मीटर² प्रति किलोग्राम² प्राप्त होता है G का मान बहुत कम होने के कारण दैनिक जीवन में हम इस आकर्षण बल का अनुभव नहीं कर पाते हैं परंतु आकाशीय ग्रहों तथा उपग्रहों के द्रव्यमान अधिक होने के कारण यह आकर्षण बल आवश्यक अभ

ट्रांजिस्टर [ transistor ]

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ट्रांजिस्टर एक ठोस अवस्था युक्ति होती है अर्थात इसकी कार्यप्रणाली ठोस में आवेश वाहक के प्रवाह पर आधारित होती है यह सिलीकान या जर्मेनियम के क्रिस्टल से बना होता है जिसमें N प्रकार के पदार्थ की एक परत को P प्रकार के पदार्थ की दो परतों के बीच सैंडविच की भांति व्यवस्थित किया जाता है इसी प्रकार P प्रकार के पदार्थ की एक परत को N प्रकार के पदार्थ की 2 परतों के बीच में व्यवस्थित करके ट्रांजिस्टर तैयार किया जाता है एक ही प्रकार के दो अर्ध चालकों के मध्य दूसरे प्रकार के अर्ध चालक की पतली परत लगा देने पर जो युक्ति बनती है उसे trasistor कहते हैं Transistor दो प्रकार के होते हैं (1)PNP transistor जब दो p टाइप अर्ध चालकों के मध्य N टाइप अर्ध चालक की एक पतली परत लगा दी जाती है तो इस प्रकार बने transistor को PNP transistor कहते हैं (2)NPN Transistor जब दो N टाइप अर्ध चालकों के मध्य P टाइप अर्ध चालक की एक पतली परत लगा दी जाती है तो इस प्रकार के transistor को NPN transistor कहते हैं ट्रांजिस्टर के आविष्कार से पहले वेक्यूम ट्रायोड प्रयोग प्रयुक्त किए जाते थे परंतु ट्रांजिस्टर ने इन